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बचपन के वो सुहाने दिन, मोहल्ले में मस्तियाँ करना आते जाते लोगों को छेड़ना, पापा के स बचपन के वो सुहाने दिन, मोहल्ले में मस्तियाँ करना आते जाते लोगों को छेड़ना, ...
आखिर क्यों बड़े हुए हम, वह बचपन ही कितना सुहाना था। आखिर क्यों बड़े हुए हम, वह बचपन ही कितना सुहाना था।
न चिंता थी न दुविधा थी न भाषा धर्म की दीवार थी न चिंता थी न दुविधा थी न भाषा धर्म की दीवार थी
याद आ रही है उन गलियों की जहां खेल कर मैं बड़ा हुआ। याद आ रही है उन गलियों की जहां खेल कर मैं बड़ा हुआ।
काश मिल जाए मुझे, वो बचपन सुहाना। काश मिल जाए मुझे, वो बचपन सुहाना।